Haan main gumraah hoon meri hi raah mein
हाँ मैं ग़ुमराह हूँ मेरी ही राह में,
हाँ वो हमराह है एक तृष्णा की चाह में,
क्यों उजला ना कर पाया मैं इस तम के भ्रम को,
जो मुझपे है छाया मेघ बन के मल्हार में,
रखता हूँ हौसला की आएगा एक दिन,
की लौट ना पाएगा वो यूँ किसी की तलाश में,
है वक़्त ना मेरा है वक़्त ना उसका,
पर कामयाबी हैं लिखी इसी इंतज़ार में,
ना बेठना है गवारा फिर बैरागी से भाव में,
बस एक मरीचिका को बेबस ये नैना इस राह में,
हाँ मैं ग़ुमराह हूँ मेरी ही राह में
हाँ वो हमराह है एक तृष्णा की चाह में,
क्यों उजला ना कर पाया मैं इस तम के भ्रम को,
जो मुझपे है छाया मेघ बन के मल्हार में,
रखता हूँ हौसला की आएगा एक दिन,
की लौट ना पाएगा वो यूँ किसी की तलाश में,
है वक़्त ना मेरा है वक़्त ना उसका,
पर कामयाबी हैं लिखी इसी इंतज़ार में,
ना बेठना है गवारा फिर बैरागी से भाव में,
बस एक मरीचिका को बेबस ये नैना इस राह में,
हाँ मैं ग़ुमराह हूँ मेरी ही राह में
Comments
Post a Comment
Your suggestions are welcome. Rajdeep Paliwal